लंबे
अरसे से एक दर्द
दिल में ले कर
बैठा हूँI यूँ तो
हिन्दी भाषा में नहीं
लिखता, पर क्योंकि ये
दर्द हिन्दी के अपमान से
जागा है, तो सोचा
अँग्रेज़ी में अपना दर्द
ज़ाहिर कर के इस
पाप का भोगी ना
बनूँI
दो
दिन पहले एक hostel
में घुसा, दिल्ली मेंI वहाँ reception
पर टूटी फूटी अँग्रेज़ी
में hello, how’re you से स्वागत हुआI वैसे तो आदत पड़
गयी है, पर थोड़ा
अटपटा लगाI जब दोनो
हिन्दी भाषी हैं, तो
राम राम की जगह
जबरन hello क्यूँ? यदि आप अत्यधिक
धार्मिक हैं, तो सलाम
अलैईकूं भी चलेगा, पर
hello? इससे पहले की आप सोचें की मैं हर हिन्दुस्तानी को हिन्दी भाषी मानने वालों में
से हूँ, मैं आपको बता दूं की साहब की nameplate पर Sanjeev Yadav लिखा हुआ थाI अब तो
दोष ना दीजिएI
खैर,
अक्सर ही मुझे मेरे
रंग के कारण विदेशी
समझा गया हैI इस
भ्रम की संभावना उन
जगहों पर बढ़ जाती
है जहाँ असली विदेशी
भारी मात्रा में रहते हैं,
जैसा की इस hostel
में थाI मुझे लगा
साहब की ग़लती नही
है, मुझे विदेशी समझ
बैठे हैं, तो ज़ाहिर
है अँग्रेज़ी में स्वागत करेंगेI भ्रम दूर करने के
लिए मैने बोला, “बढ़िया,
आप बताइए?”I जवाब आया, very
goodI तभी किसी ने पीछे
से आवाज़ लगाई तो यादव
जी पलटे और बोले,
“अबे आ रहा हूँ
ना”I फिर तुरंत मेरी
ओर घूमे और अपनी
टूटी फूटी अँग्रेज़ी में
कहा, “room 1, here your keys”I
Room
1 में अंदर घुसा तो
फटाफट नीचे वाला बिस्तर
पकड़ा और तशरीफ़ रखीI सामने देखा तो एक
महाशय बैठे थेI अब
उनकी कोई nameplate तो
नही थी पर तजुर्बा
कह रहा था की
साहब हिन्दी भाषी ही हैंI जैसे ही आँखें मिलीं
तो उन्होनें hey hi बोलाI मैंने उनको
hey बोला और सामान खोलने लगाI कुछ मिनट बीते और उन्होनें मुझसे पूछा, I am going
for lunch. Want to join? Accent सुन कर पक्का हो गया की हिन्दी भाषी ही हैंI मैंने उन्हें हिन्दी में विनम्रता से मना किया और कहा की dinner साथ करेंगेI तब तक साहब के
फोन ने चीत्कार करना शुरू कर दियाI जाते जाते बस “हाँ प्रतीक, बताओ” सुनाई पड़ाI
ऐसी
असंख्य घटनाएँ हैं, कुछ तो आपके जीवन में भी घटी होंगीI मानना पड़ेगा, अँग्रेज़ महान
थेI ना सिर्फ़ हमारे शरीर को, बल्कि हमारी मानसिकता को भी आधीन बना गयेI हिन्दुस्तान
को पाकिस्तान के साथ साथ अँग्रेज़िस्तान में तोड़ गयेI जो अँग्रेज़िस्तान में पलायन
कर गये वो हिंदुस्तानियों को तिरस्कार की दृष्टि से देखने लगेI आज परिस्थिति कुछ ऐसी
है की हिन्दी में बात करना हमारे देश में क्षीण आर्थिक और शैक्षिक स्तर का द्योतक बन
चुका हैI भारत में यदि दो अजनबी मिलते हैं, तो शक्ल-अक्ल तो बाद में देखते हैं, पहले
सामने वाला अँग्रेज़ी अच्छी बोलता है की नही इसकी चिंता सबसे अधिक सताती हैI और यदि
वो सच में अँग्रेज़ी हमसे बेहतर बोलता है तो हम घबरा जाते हैं और अपने सारे गुणों की
बलि दे कर स्वयं को ओछा समझने लग जाते हैंI यदि हमसे कोई अधिक सफल पर बदतर अंग्रेजी बोलने वाला मिलता है तो एक बार को उसकी अंग्रेजी सुन कर चौड़े तो हो ही लेते हैंI Shakespeare के गुणगान गाते हैं, पर वाजपेयी जी के भाषण हमारी समझ से ही परे हैंI Tinder पर हिंदी में विवरण लिखना मतलब match से no match. वाह रे cinema में राष्ट्र गान पर सतर्क
होने वाले गौरवान भारतीयI
अब
अभी की घटना देखिएI विमान में बैठा हूँ,
air hostess ने मुझे sir may
I request you to shut your
laptop कहा, और बगल वाले भाईसाहब,
जिनकी तोंद कमीज़ के
नीचे से फूट कर
बाहर आ रही है,
उन्हें sir please phone बंद
कर दीजिए कहाI अरे मेमसाहब,
मैं भी तो इस
देश का वासी हूँ,
मुझसे भी ऐसा अपनापन
दिखा लिया होताI साथ
ही साथ उस बेचारे
को भी शर्मसार ना
होना पड़ताI ठीक उसी प्रकार,
जब अँग्रेज़िस्तान के वासी restaurant
जाते हैं तो वहाँ
के हिन्दुस्तानी waiter को सिर्फ़ और
सिर्फ़ अँग्रेज़ी में ऑर्डर देते
हैं, कि कहीं waiter
उन्हें अपनी औकात का
ना समझ बैठेI बेचारा waiter भी डर के
मारे केवल अँग्रेज़ी में बात करता है, चाहे कितनी टूटी फूटी ही सहीI
स्वाभाविक
है की waiter जैसे जो हिन्दुस्तान में
छूट जाते हैं वे
अँग्रेज़िस्तान जाने की ज़ोर
शोर से तैयारी करते
हैंI अधर में टँगे
रह गये तो क्या
हुआ, अँग्रेज़ी के 2-4 वाक्य सीख कर अपने
को फन्ने ख़ान तो समझ
ही लियाI
मेरा असमंजस सिर्फ़ हिन्दी को ले कर नहीं हैI अँग्रेज़ी ने भारत के कोने-कोने और बच्चे-बच्चे को अपनी गिरफ़्त में ले लिया हैI पर जहाँ बाकी भाषाओं के लिए मेरे पास सहानुभूति है, वहाँ हिन्दी के लिए मेरे पास समानुभूति हैI
हमने अपनी मातृभाषा
की मिठास और आत्मीयता का
त्याग करके एक विदेशी
भाषा को अपना लिया
हैI माफ़ करें, अपनाया
नहीं है, स्वयं को इसकी गिरफ्त में रखा हुआ है,
क्योंकि अपनों से बात करते
वक़्त, चाहे वो दोस्तों
को गाली देना हो
या माँ-बाप को
प्यार, हम हिन्दी का
ही प्रयोग करते हैंI मैं
उन लोगों की बात नहीं
कर रहा जो ऐसे
मौकों पर भी अँग्रेज़ी
में ही बात करते
हैं, उनके लिए तो
अँग्रेज़ी ही मातृभाषा हैI हिन्दी तो बस वो
कलंक है जिसे नौकरों
से बात करते वक़्त
ज़बान पर लगाना पड़ता
हैI मन ही मन,
इनमें से कई लोग शायद
oh my god, hindi again कह कर कोसते
होंगेI कुछ ऐसे भी
अवश्य हैं जिनकी अँग्रेज़ी पर ऐसी अटूट
पकड़ है की उनके
लिए इसी भाषा में
अपने विचार व्यक्त करना सबसे सरल
हैI पर ऐसे लोग
चुनिंदा हैंI बाकी सबके
लिए अँग्रेज़ी बोलना सिर्फ़ एक दिखावा है,
एक छलावा हैI
ऐसा
नहीं है की हिन्दी
के हनन के स्वाभाविक
कारण नहीं हैंI हैं,
बिल्कुल हैंI Labour market में
अँग्रेज़ी करीब करीब अनिवार्य
है, अपने बहुभाषी देश
और दुनिया के कोने कोने
में अपनी बात पहुँचाने
का अकेला माध्यम अँग्रेज़ी ही है, विज्ञान
एक हद के बाद
हिन्दी में पढ़ना शायद
नामुमकिन है, और हिन्दी
साहित्य का तो ना
पूछोI पर भाई, माँ
बूढ़ी हो जाती है
तो उसे वृद्ध आश्रम
में डाल देते हैं
क्या? फिर किसी ने पूछा माँ कहाँ गयी तो बोल
दिया की मर गयी,
और जब कभी दिल
रोया तो चुपके से
जा कर गले लगा लियाI अरे हिन्दी तुम्हारी
बूढ़ी माँ हैI इसने
तुम्हे ज़िंदगी भर अपने स्नेह
और करुणा से सींच कर
बड़ा कियाI अब तुम्हे अँग्रेज़ी
के रूप में नयी
गर्लफ्रेंड मिल गयी तो
बूढ़ी माँ का तिरस्कार
करोगे? माँ अपनी संतान
का गौरव नहीं चाहती,
सिर्फ़ उसका प्रेम चाहती
हैI दोनों को प्रेम दो,
माँ को भी और
गर्लफ्रेंड को भीI दोनों
का अपना अपना महत्व
है, अपना अपना स्थान
हैI पर याद रखो
माँ का स्थान सबसे
बड़ा होता हैI
Bahut hi umda lekh.
ReplyDeleteDhanyawaad bhai. Aur bhi lekh hain, Hindi mein to nahi par padhiyega zaroor.
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